सहिबाला होने के सुख
यह बारातों का मौसम है .दिल्ली की बरातों
में तो कुछ पता ही नहीं चल पाता की कौन आम है और कौन खास. पूर्वांचल की बारातों
में आपकी महत्ता आपको दिए गए दायित्वों से तय होती है .बारात पक्ष में सबसे ज्यादा
मार सहिबाला बनने को लेकर होती है ,दूल्हे की अगर एक से अधिक बहने व भाभियां
तथा भांजे और भतीजे हैं तो यह तय करना बड़ा मुश्किल हो जाता है की इतना महान पद
किसे दिया जाये .एक को मानाएं तो दूजा रूठ जाता है .जो भांजाया भतीजा सहिबाला नहीं
बन पाता वह तो नाराज़ होता ही है साथ ही उनकी माएं यानी दुल्हे की बहने व भाभियां भी नाराज़
हो जाती हैं हों भी क्यूँ न सहिबाले जैसा मलाईदार पद फिर कहाँ मिलने वाला है
.बारात में सहिबाला सबसे ज्यादा लाइम लाइट में रहने वाला प्राणी होता है उसपर सबकी
निगाहें टिकी होती हैं .दुल्हा तो एक जगह फिक्स हो चूका होता है जबकि सहिबाले में
अपार संभावनाएं छिपी होती हैं.दुल्हे से ज्यादा प्रोटोकाल सहिबाले के लिए फॉलो
किये जाते हैं ,उसकी हर जरूरत का ध्यान रखा जाता है
.हंसी- मजाक ,नैन -मटक्के सब सहिबाले साहब से ही वो
नाराज़ न होने पाएं इस बात का पूरा ख्याल रखा जाता है.सहिबाले की हैसियत
प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव जैसी होती है ,दूल्हा तो बस औपचारिकतायें निभाता है महत्वपूर्ण निर्णय सहिबाला ही लेता है.या
ऐसा उसे आभास कराया जाता है कि वह महत्वपूर्ण है .मगर इस पद के चयन की प्रक्रिया
बहुत ही अलोकतांत्रिक है आम तौर पर सबसे बड़े बच्चे को यह पद सौंप दिया जाता है
उनसे छोटे बस मन मसोस कर रह जाते हैं वह चाहते हुए भी विरोध नहीं कर पाते हैं. यह
एक प्रथा है जो चलती आई है.बड़े के आगे छोटों की सारी योग्यताएं नजरंदाज कर दी जाती
हैं वह भले ही अधिक योग्य और स्मार्ट क्यूँ न हों .हमारा सामूहिक धर्म है कि एकजुट
होकर इस प्रक्रिया को और अधिक लोकतांत्रिक बनाने की मुहिम चलायें अन्यथा ऐसे ही
उपेक्षित होते रहेंगे .सहिबालों के पद बढ़ा देने से इसका चार्म ख़त्म हो जाने का डर
है .सहिबाला तो एक ही बनेगा लेकिन कौन बनेगा इसके निर्धारण पर गंभीर विचार की
आवश्यकता है .आज तक मै कभी सहिबाला नहीं बन पाया और इस जीवन में इस सुख से वंचित
रह गया आप न होने पाएं इसलिए अभी से तिकड़म भिडाने शुरू कर दीजिये.मैंने कुछ
लोगों को देखा है जो ज़िन्दगी भर कभी सहिबाला नहीं बन पाते वो बारात में मिठाई का
मालिक बनकर अपनी कुंठा मिटाते हैं और मिठाइयों की हेराफेरी से होने वाले लाभ से
सहिबाला बनने के लाभ उठाना चाहते हैं .वे कई बार आम बारातियों और घरातियों को अपनी
धौंस भी दिखाते हैं खासकर महिलाओं से वे और अधिक भाव खाते हैं वैसे ही जैसे कि
सहिबाला सालियों से .मगर यहाँ वो बात कहाँ साहब जो वहां है .यहाँ आप उम्र के एक
पड़ाव पर आ चुके होते हैं और लोग आपसे डरते हैं बल्कि वहां जीवन की एक नयी शुरुवात होती है .वहां सब
प्यार से आपके साथ होते हैं यहाँ सब डर और स्वार्थ से आपके साथ होते हैं कि उन्हें औरों से
अधिक मिठाई मिल जाए ,खाने के लिए तो मिले ही घर् ले जाने के लिए मिल जाए ,आम नहीं
खास मिठाई मिल जाए.हालाँकि यह भी मलाईदार पद जरूर है मगर फुल क्रीम नहीं यह ऊपर से
डाली गयी मलाई है.इस पद को प्राप्त करने के लिए आपको उन नेताओं से कई गुना अधिक म्हणत
करनी पड़ेगी जो मंत्री पद प्राप्त करने के लिए दिन रात करते रहते हैं जैसे की
दुल्हे के आगे पीछे घुमना ,उसकी तारीफों के पुल बांध देना झूठी ही सही.मेरा तो
यहाँ तक मानना है की एक सहिबाला संघ भी होना चाहिए और सहिबाला पद कैसे प्राप्त
करें इस पद की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए.